लेखनी कहानी -13-Nov-2022

इसका मेरे जिंदगी से कोई संबंद्ध नही ये महज ख्याल है मेरी कोई कविता नही कृपया पढ़ें और महसूस करें खुद से


मेरे कुछ उलझें सवाल सा
तू भी बदले मिजाज सा
सफर तन्हा सा कट जाता है 
जब कोई खूबसूरत हमसफर मिल जाता है
मुँह चिढ़ाती रेल की पटरिया
पीछे छूटते खेत खलियान नदिया 
कितना कुछ खुशनुमा कर जाता है
रोज की ये दौड़ाधापी में
ये ट्रेन कितनो के जिंदगी जीने का वजह होती है
किसी की माँ अपने बेटे का इंतज़ार कर रही होगी तो
हो सकता किसी की पहली मुलाक़ात तो किसी की यह आखिरी मुलाक़ात होगी
बस एक ही झलक तो देखा था उसे
हस्ते हुए जुल्फों को कान पर लगाते हुए वह कितनी हसीन लग रही थी
नाम तो उसका पता नही था
लेकिन उसकी तस्वीर ना मेरे आँखों में कैद हों गई थी
ये ट्रेन भी ना कितने गांवो और शहरो को छोड़ते हुए
अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी
उगते सूरज के लालिमा के बीच दौड़ती ट्रेन
वो सन्नाटो के बीच तेज़ सिटी मारती कोलाहाल करती ट्रेन बड़ा हीं सुखद अहसास देती 
यह लाइफ मे आगे बढ़ने का संकेत भी देता है
वो प्लेटफार्म नम्बर 3 पे ट्रेन का आके रुकना
वो बार बार उसका मुझे देख के झुमका ठीक करना
मेरे आते ही खिड़की पे तेरा आँखे मिचना
जैसे जैसे घर करीब आता
जैसे जैसे प्लेटफॉर्म करीब आता 
ख़ुशी और गम दोनों का अहसास एक साथ हो जाता
ख़ुशी इस बात की होती की घर करीब आ रहा 
लेकिन वो ना जाने आगे किस प्लेटफॉर्म पे उतर जाए यह बात मुझे अन्दर ही अंदर खाई जा रही थी
सच यार उसे खो देने का डर लग रहा था
ये एक साथ खुशी और गम का
अहसास भी ना बड़ा अजीब होता है ना
स्लीपर क्लास कोच के बीच उसकी चटपटी बातें
पुदीना की चटनी और वो हसीन राते
मेरी तरफ टकटकी किये देखती उसकी भूरी आंखे
वो प्लेटफार्म देखते उसका पर्दा खींचना
वों सहमी सहमी नजरों से जुल्फों को आगे खींचना
घर जाने की खुशी किसको नहीं होती
प्लान भी बना की घर पहुंचते यहाँ जाऊंगा वहाँ जाऊंगा
खुद से पूछता रहा प्रश्न हर वक़्त
सोच रहा था ना ये हसीन वादियां ये झरने पहाड़ कितने प्यारे है 
फिर जब उसकी आँखे देखता तो सारी हंसीं वादियां 
ना जाने क्यू फीके से क्यूं लगने लगते
उसकी बातें मुलाकाते चोरी चोरी नजरो से देखती भूरी आँखे
काश वो मूंगफली और पुदीने कि चटनी ये ट्रेन तुम फिर से मिलोगी क्या

तभी मुझे झपकी लगी और जब मै जागा तो वह ट्रेन से जा चुकी थी 
निराश था मै और हताश भी 
मै खुद से प्रश्न करता रहा
एक बात बताओ ना मेरे ख्यालो की परी 
जब मै फिर लौटू तो फिर से मिलोगी क्या
अब इसी उधेड़बुन मे मै पटरी पे बैठ जाता हूं
कि इसी पटरी को छूती ट्रेन फिर से तुम्हे ले गई होंगी
यार वो यादे बहुत सताती है 
कितनी दफा सफर के दौरान मेंरी टकटकी नज़रे तुम्हे ढूढ़ंती रहती
लेकिन हर बार मेरी आँखे उदास हो जाती 
यात्रियो के भीड़ मे वो माध्यम सी आवाज़ सबसे अलग सी थी
शायद सचमुच वो एक परी थी
जो सच मे स्वर्ग से उतरी थी
तभी मेरी नजर रेल की उन तन्हा पटरियों पर पड़ी
जो साथ तो होती थी फिर भी वो कभी ना मिल पाती 
*****************************************
राजेश बनारसी बाबू
उत्तर प्रदेश वाराणसी
स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना

   18
12 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2022 07:32 PM

बहुत ही सुन्दर

Reply

धन्यवाद सर आपको

Reply

Bahut sundar rachna likha hai aapne 👌🌸

Reply

Abhinav ji

14-Nov-2022 09:28 AM

Very nice👍

Reply